1. एक आहत पक्षी


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1. एक आहत पक्षी


Date: 23/5/2020

उन दिनों भारत के मध्य में एक क्षेत्र था, जिसे 'पक्षीराज' के नाम से जाना जाता था। यह प्रदेश पक्षियों की विविध प्रजातियों के लिए प्रसिद्ध था। वहां के लोग भी पक्षियों से गहरा लगाव रखते थे। विशेष रूप से तोतों की अनेक रंग-बिरंगी प्रजातियाँ वहाँ की शान थीं। इन्हीं में से एक तोतों का समूह, जिसे 'कर्रा सुगा' कहा जाता था, शुद्धाकिनी नदी के किनारे अपना बसेरा बनाए हुए था।

शुद्धाकिनी नदी अपने नाम की तरह निर्मल और पवित्र थी। वहाँ के सभी जीव-जंतु इसी जल से अपनी प्यास बुझाते थे। उसी नदी के किनारे एक विशाल बरगद का पेड़ था, जहाँ मीना और मानस नामक दो तोते एक घोंसले का निर्माण कर रहे थे। मानस तिनके खोजने जाता, और मीना घोंसले को आकार देती। कुछ ही दिनों में मीना ने चार अंडे दिए।

सुबह का समय शांत रहता, लेकिन शाम ढलते ही चीलें आसमान में मंडराने लगतीं। इसलिए अंडों की सुरक्षा के लिए किसी एक को घोंसले में रहना पड़ता था। एक शाम मीना भोजन की तलाश में निकली, लेकिन दूर-दूर तक उसे एक भी दाना नहीं मिला। उड़ते-उड़ते उसका गला सूख गया, और वह नदी पर पानी पीने बैठी। लेकिन जैसे ही वह पहली बूंद पीने वाली थी, एक चील ने उस पर हमला किया। मीना डर के मारे उड़ गई, पर पीछा करती चील से बचते हुए वह एक टहनी से टकरा गई। उसके पंख घायल हो गए और वह ज़मीन पर गिरकर बेहोश हो गई।

उसी समय, एक बालक अपने दादा जी के साथ उस रास्ते से गुज़र रहा था। बच्चे की नजर घायल तोते पर पड़ी। वह तुरंत उसकी ओर भागा और उसकी हालत देख कर उसकी आँखें भर आईं। उसने अपने दादा जी से कहा, "क्या हम इस घायल पक्षी को घर ले जा सकते हैं?" दादा जी ने जवाब दिया, "बेटा, हमारे पास तो खुद खाने के पैसे नहीं हैं, इसे क्या खिलाएँगे?" बालक ने कहा, "मैं इसे अपना भोजन दे दूँगा, और जब ये ठीक हो जाएगी, तो इसे आज़ाद कर देंगे।" उसकी मासूमियत से दादा जी पिघल गए और वे मीना को घर ले आए।

होश में आने पर मीना ने खुद को एक नरम बिस्तर पर पाया। पहले तो उसे डर लगा कि कहीं वह किसी शिकारी के हाथ न लग गई हो। लेकिन जब उसने देखा कि उसके पंखों पर पट्टियाँ बंधी हैं, तो वह समझ गई कि किसी भले इंसान ने उसकी जान बचाई है।

बालक खुशी से चिल्लाया, "दादा जी! चिड़िया को होश आ गया!" दादा जी तुरंत दाना-पानी लेकर आए। मीना ने पानी पिया और थोड़ी राहत पाई। फिर बालक ने उसकी पट्टियाँ खोलीं और नई औषधि लगाई।

जब वे खाना खाने बैठे, तो बच्चे ने कहा, "दादा जी, मुझे अभी भी भूख लगी है।" दादा जी बोले, "बेटा, दवा लाने में सारे पैसे खर्च हो गए, बस इतना ही खाना है। तू मेरा हिस्सा खा ले।" बच्चे ने मुस्कुरा कर कहा, "अब भूख नहीं है दादा जी।" यह सुनकर मीना का दिल भर आया।

दादा जी एक धोबी थे और रोज़ सुबह नदी पर कपड़े धोने जाते थे। बच्चा दिन भर मीना के साथ खेलता था और मीना को भी उसमें बहुत आनंद आता। कुछ ही दिनों में मीना पूरी तरह ठीक हो गई। उसी रात उसने सपना देखा कि उसके अंडे फूट रहे हैं। घबराकर वह उड़ गई और घोंसले पर पहुँची। वहाँ उसके चारों बच्चे सुरक्षित थे। उसकी आँखें भर आईं—खुशी भी थी, दुख भी कि वह उनके जन्म का पल नहीं देख पाई।

एक दिन जब मीना भोजन के लिए निकली, तो उसने कुछ चोरों को देखा जो सोना छिपा रहे थे। तभी उसके मन में एक उपाय आया। वह घोंसले पर लौटी और अपने समूह की चिड़ियों को साथ लाई। जब चोर गहरी नींद में थे, सभी चिड़ियों ने मिलकर अपने पंजों में वह सोना उठाया और उस बालक के घर पर वर्षा कर दी जिसने मीना की जान बचाई थी। इतना सोना उनके घर में गिरा कि चलने की भी जगह नहीं बची।

**इसीलिए कहा गया है —**
“जो सच्चे मन से किसी की मदद करता है,
वो जीवन में उसका कई गुना लौटकर पाता है।”

2. विश्वास (लेख)

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2. विश्वास (लेख)


Date: 12/1/2020

हमारा जीवन एक अथाह समुद्र है, जिसे ठहरने के लिए भूमि यानी सहारे और विश्वास की आवश्यकता होती है। सहारा तो हमें हमारे परिवार और हमारे प्रिय जनों से मिल ही जाता है, पर बात विश्वास की है। विश्वास पाना बहुत ही दुर्लभ है, लेकिन हम सबसे अधिक विश्वास अपने आप पर ही करते हैं। परंतु हम भी औरों की तरह एक मनुष्य ही हैं, जिसमें लालच और द्वेष की भावना होती है — और हमारी अच्छाई उसमें कहीं दब जाती है।

कभी-कभी ऐसा भी समय आता है जब हम कोई गलत कार्य कर रहे होते हैं, लेकिन उस समय हमें अपने ऊपर ही विश्वास होता है कि हम सही हैं। और इसी जल्दबाज़ी में हम कोई गलत निर्णय ले लेते हैं, जिससे आगे चलकर हमें तकलीफों का सामना करना पड़ता है। इसलिए हमारे जीवन में एक मित्र, यानी (भगवान), की आवश्यकता होती है, क्योंकि हम जानते हैं कि वो हमेशा सही मार्ग पर चलते हैं और हमें भी चलना सिखाते हैं।

अगर हम अपने जीवन में प्रभु को सर्वोत्तम मान लें, तो हम सदैव सही निर्णय ले सकेंगे और सही मार्ग पर चल सकेंगे, क्योंकि चाहे मनुष्य किसी भी धर्म का हो, उसके ईश्वर की बताई बातें हमेशा उचित और तेजस्वी रही हैं।

सभी धर्मों में लगभग एक जैसी बातें बताई गई हैं, जो सशक्त शब्दों में वीरता, बलिदान और देशभक्ति को महत्व देती हैं। हमारे जीवन में सबसे ज़्यादा विश्वास हमें अपने ईश्वर पर होना चाहिए, और उसके बाद खुद पर। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि हम अपने ईश्वर की बातों को अनसुना कर देते हैं, और अपने आप पर इतना ज़्यादा विश्वास कर लेते हैं कि गलत निर्णय लेकर अपने जीवन रूपी इस अथाह समुद्र में बाढ़ लाने की संभावना बना लेते हैं — जिससे हमारे "घर", यानी हमारी खुशियाँ, उजड़ जाती हैं।

तब हमारे ईश्वर हमारे मन में सूर्य की तरह उजाला करके एक नया सवेरा लाते हैं, जिससे जीवन का पानी तट से दूर हटने लगता है और गृहस्थी फिर से बनना शुरू हो जाती है। कुछ गृहस्थियाँ पक्के सीमेंट की बनी होती हैं, जिन्हें पानी गिरा नहीं पाता — पर नुकसान ज़रूर पहुँचा देता है। वो पक्का मकान हमारा परिवार है, जिसे हम अपने मन में बहुत प्रेम से बसाए रखते हैं — और उस पर से हमारे विश्वास को कोई साधारण चीज़ नहीं हटा सकती।

विज्ञान के नज़रिए से देखा जाए तो हमारे शरीर में हृदय सबसे नाज़ुक अंग होता है, लेकिन जीवन जीने के लिए हमें अपने हृदय को ही सबसे मज़बूत बनाना होगा, क्योंकि उसी से विश्वास पैदा होता है। अगर हमारा हृदय ही कमज़ोर होगा, तो हम ऐसी सीमेंट जैसी मज़बूती का भार कैसे सहेंगे — और वो मकान एक दिन गिर ही जाएगा।

ऐसा कहा गया है कि किसी पर विश्वास करना और किसी का विश्वास जीतना आसान होता है, लेकिन उस विश्वास को निभाना सबसे मुश्किल होता है। इसलिए हमें अपना विश्वास उसी को देना चाहिए जो उसका हकदार हो। और अगर ऐसा कोई न मिले, तो बिना किसी संकोच के अपना विश्वास भगवान को सौंप देना चाहिए, क्योंकि उनसे ज़्यादा उस विश्वास का मान कोई नहीं रख सकता।

विश्वास कोई वस्तु नहीं है जो जब किसी ने माँग ली तो हमने दे दी — इसका निर्णय आपको खुद करना होगा कि आप अपना विश्वास किसे देना चाहते हैं। जीवन में जिन लोगों से आप दोस्ती करें, वो सार्थक और गुणकारी होने चाहिए। लेकिन सिर्फ गुणकारी होना ही काफी नहीं — उनके दिल में आपके लिए विश्वास और स्नेह का भाव होना चाहिए। और अगर ऐसा नहीं है, तो आपको उनके दिल में उस विश्वास का भाव पैदा करना होगा।

जीवन खुद एक विश्वास है — उसे जीना भी विश्वास है, और जीने के बाद एक सुखद मृत्यु मरना भी विश्वास है। विश्वास के बिना कुछ नहीं है। आज के युग में तो जीवन के हर पल इसकी बेहद ज़रूरत होती है।

अब तो पशु-पक्षी भी एक-दूसरे पर कितना विश्वास करते हैं — वो रोज़ सुबह उठकर भोजन की तलाश में जाते हैं और अपने बच्चों को भोजन कराते हैं, फिर उड़ जाते हैं। उन्हें समय पर विश्वास होता है — वो जानते हैं कि समय कभी उन्हें धोखा नहीं देगा।

ऐसा नहीं है कि लोग विश्वासघात नहीं करते — कुछ लोग अपने से, कुछ अपने अपनों से, और कुछ तो अपनी मिट्टी (देश) से भी विश्वासघात कर देते हैं। ऐसे लोगों को कभी अपना विश्वास न दें, क्योंकि वो उस विश्वास की कोई कीमत नहीं समझते।

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3. Pluto


Pluto

3. Pluto


Date: 8/6/2019

This is a fictional story about how Pluto became a dwarf planet.

Once upon a time, there was a planet named Pluto. But this planet was on the verge of complete destruction. Its people were unhappy, constantly fighting among themselves. There was no unity, no compassion, and very little humanity left. Pollution had wiped out almost all life, and only a few animals remained.
The gods, watching from the heavens, were deeply disturbed by the chaos and misery unfolding on Pluto. They could not understand why the people had become so hostile, selfish, and destructive. So one day, all the gods gathered in council and decided to send a messenger to Pluto to uncover the root of the problem.
The task was given to Tuna — a wise and gentle divine messenger. When Tuna arrived on Pluto, he was shocked by what he saw. People were shouting, stealing, and fighting in every corner of the land. There was no greenery, no animals, and the air was heavy with smoke.
As Tuna walked through the ruins of what once must have been a beautiful world, he noticed something small — an ant, slowly searching for water. Surprised, Tuna knelt down and asked, “Why are the people of this planet always fighting? Why is there so much destruction and hatred?”
The ant looked up and said, “There’s no sunlight here. The sun is too far, and without it, nothing grows. There are no plants, no trees, no food, and no clean air. Without nature, people grow bitter and cruel. I believe I’m the last ant left on this entire planet.” Then the ant paused and asked, “Can you give me a drop of water?”
“Of course,” Tuna replied gently, offering some water.
After drinking, the ant asked curiously, “Who are you? You’re not from this planet. How do you have water?”
Tuna smiled and replied, “I am Tuna, messenger of the gods. I was sent here to understand why this planet is falling apart — why there are no plants, why the land is barren, and why people no longer live in peace.”
The ant nodded solemnly. “It all begins with sunlight,” it said. “Without the sun, nothing else survives.”
“Then we must go to the gods,” Tuna said. “They need to hear this truth directly.”
Together, Tuna and the tiny ant ascended to the heavens and explained everything to the gods. After hearing the whole story, the gods held a great meeting and discussed how to help Pluto and its people.
Soon after, a mysterious light appeared from the mountaintops of Pluto. The people were stunned — they had never seen such brilliance before. Then a divine voice echoed across the skies:
“We have heard your pain. We now understand how much you have suffered in the absence of sunlight. But worry no more — we have found a solution. Your planet will be moved to a new solar system, where the sun shines bright, and life can begin anew. You will grow trees, plants, and grains. You will thrive again.”
A wave of joy swept through Pluto. The people danced and cried in happiness. After so long, they finally had hope.
And that is why Pluto is no longer visible in our solar system. We now call it a "dwarf planet", but in truth, it was moved to a better place — a new solar system, where it could live again in light and harmony.